दूध टोनिंग प्रणाली: भारतीय डेयरी उद्योग की आधुनिक तकनीक

दूध टोनिंग प्रणाली एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जो भारतीय डेयरी उद्योग में व्यापक रूप से प्रयोग की जाती है। इस तकनीक के माध्यम से पूर्ण वसायुक्त दूध (फुल क्रीम मिल्क) में स्किम्ड मिल्क पाउडर और पानी मिलाकर वांछित वसा प्रतिशत वाला दूध तैयार किया जाता है।

दूध टोनिंग प्रणाली क्या है?

दूध टोनिंग की आवश्यकता क्यों है?

भारत में प्राकृतिक रूप से प्राप्त होने वाले भैंस के दूध में वसा की मात्रा 6-8% तक होती है, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से अधिक मानी जाती है। दूध टोनिंग प्रणाली के द्वारा इस वसा प्रतिशत को घटाकर 3-4% तक लाया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए अधिक उपयुक्त होता है।

मुख्य लाभ:

  • वसा की मात्रा को नियंत्रित करना
  • पोषण मूल्य बनाए रखना
  • किफायती मूल्य पर गुणवत्तापूर्ण दूध उपलब्ध कराना
  • डेयरी उत्पादकता में वृद्धि

टोनिंग प्रक्रिया की विधि

दूध टोनिंग प्रणाली में निम्नलिखित चरण शामिल हैं:

चरण 1: पूर्ण वसायुक्त दूध का विश्लेषण करना चरण 2: आवश्यक स्किम्ड मिल्क पाउडर की मात्रा निर्धारित करना चरण 3: उचित अनुपात में पानी मिलाना चरण 4: समरूप मिश्रण तैयार करना चरण 5: पाश्चुरीकरण की प्रक्रिया

भारतीय बाजार में टोन्ड मिल्क

भारत में दूध टोनिंग प्रणाली से तैयार किए गए दूध को मुख्यतः तीन श्रेणियों में बांटा गया है:

  • टोन्ड मिल्क: 3% वसा, 8.5% SNF
  • डबल टोन्ड मिल्क: 1.5% वसा, 9% SNF
  • स्टैंडर्डाइज्ड मिल्क: 4.5% वसा, 8.5% SNF

गुणवत्ता नियंत्रण के मानदंड

दूध टोनिंग प्रणाली में गुणवत्ता बनाए रखने के लिए भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) और खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा निर्धारित मानकों का पालन आवश्यक है।

मुख्य परीक्षण:

  • वसा प्रतिशत की जांच
  • प्रोटीन की मात्रा का विश्लेषण
  • सूक्ष्मजीवों की उपस्थिति की जांच
  • मिलावट की पहचान

आर्थिक प्रभाव

दूध टोनिंग प्रणाली ने भारतीय डेयरी क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इससे न केवल किसानों की आय में वृद्धि हुई है, बल्कि उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर पौष्टिक दूध उपलब्ध हुआ है।

भविष्य की संभावनाएं

आधुनिक तकनीक के साथ दूध टोनिंग प्रणाली में निरंतर सुधार हो रहे हैं। स्वचालित मशीनों और डिजिटल नियंत्रण प्रणालियों के प्रयोग से इस प्रक्रिया की दक्षता में वृद्धि हो रही है।

निष्कर्ष:

दूध टोनिंग प्रणाली आधुनिक डेयरी उद्योग की आधारशिला है जो स्वास्थ्यप्रद और किफायती दूध उत्पादन में सहायक है। यह तकनीक भारतीय डेयरी क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

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