जब भारतीय सिनेमा में भव्यता, प्रेम और त्रासदी की बात आती है, तो देवदास 2002 का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है। संजय लीला भंसाली की यह कालजयी फिल्म शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास पर आधारित एक ऐसी प्रेम कहानी है जो दर्शकों के दिलों में आज भी जिंदा है। आइए जानते हैं क्यों यह फिल्म भारतीय सिनेमा का एक अमूल्य रत्न है।
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देवदास 2002 की मूल जानकारी
| विवरण | जानकारी |
|---|---|
| फिल्म का नाम | देवदास (Devdas) |
| रिलीज़ डेट | 12 जुलाई 2002 |
| निर्देशक | संजय लीला भंसाली |
| मुख्य कलाकार | शाहरुख खान, ऐश्वर्या राय, माधुरी दीक्षित |
| शैली | रोमांटिक ड्रामा, ट्रेजेडी |
| अवधि | 185 मिनट (3 घंटे 5 मिनट) |
| भाषा | हिंदी |
| बजट | ₹50 करोड़ |
| कमाई | ₹150 करोड़+ |
कहानी: प्यार, दर्द और विनाश की त्रिकोणीय गाथा
देवदास 2002 की कहानी 1900 के दशक की शुरुआत में बंगाल में स्थापित है। यह तीन लोगों की कहानी है जिनकी किस्मत प्यार की डोर से बंधी है।
मुख्य पात्र और कहानी:
देवदास मुखर्जी (शाहरुख खान) – एक अमीर जमींदार का बेटा जो लंदन से पढ़ाई करके लौटता है। उसका बचपन का प्यार पारो (ऐश्वर्या राय) से है, लेकिन सामाजिक दबाव और अहंकार उन्हें अलग कर देता है।
पारवती (पारो) – देवदास की पड़ोसन और बचपन की प्रेमिका। जब देवदास उससे शादी करने से मना कर देता है, तो वह एक बूढ़े जमींदार से विवाह कर लेती है।
चंद्रमुखी (माधुरी दीक्षित) – एक तवायफ जो देवदास से बेइंतहा प्यार करती है। वह देवदास के टूटे दिल को समझती है और उसे सहारा देने की कोशिश करती है।
कहानी का मोड़: देवदास अपने प्यार को खो देने के दर्द में शराब की लत का शिकार हो जाता है। वह पारो से किया एक वादा याद रखता है – “मैं टूटकर तुम्हारे दरवाजे पर आऊंगा”। फिल्म का अंत दिल दहलाने वाला है।
कलाकारों का जादुई प्रदर्शन
शाहरुख खान – देवदास के रूप में
शाहरुख खान ने देवदास के किरदार में अपने करियर का सर्वश्रेष्ठ अभिनय दिया। एक टूटे हुए इंसान की पीड़ा को उन्होंने बेमिसाल तरीके से पर्दे पर उतारा। उनकी आंखों में दर्द और शराब की बोतल पकड़े हाथ आज भी दर्शकों को याद हैं।
ऐश्वर्या राय और माधुरी दीक्षित का द्वंद्व
| कलाकार | किरदार | विशेषता |
|---|---|---|
| ऐश्वर्या राय | पारवती (पारो) | मासूमियत और दृढ़ता का सुंदर मिश्रण |
| माधुरी दीक्षित | चंद्रमुखी | गरिमा के साथ तवायफ का किरदार |
| शाहरुख खान | देवदास | त्रासदी नायक का परफेक्ट चित्रण |
| किरण कार्मिकर | कालीबाबू | देवदास का वफादार दोस्त |
| स्मिता जयकर | सुमित्रा | देवदास की मां |
दोनों अभिनेत्रियों ने अपने-अपने किरदारों को ऐसा जीवन दिया कि दर्शक उनमें खो गए। “काहे छेड़ मोहे” और “दोला रे दोला” में उनकी केमिस्ट्री अविस्मरणीय है।
फिल्म की अद्भुत विशेषताएं
1. भव्य सेट डिजाइन
निर्मल पांडे द्वारा तैयार किए गए सेट्स मानो एक महल की तरह हैं। हर फ्रेम एक पेंटिंग लगता है। चंद्रमुखी का कोठा हो या पारो का घर, सब कुछ आंखों को सुकून देता है।
2. संगीत – इस्माइल दरबार का जादू
देवदास का संगीत हिंदी सिनेमा के सबसे यादगार एल्बमों में से एक है:
- “सिलसिला ये चाहत का” – दर्द भरा गीत
- “दोला रे दोला” – शानदार नृत्य संगीत
- “बैरी पिया” – चंद्रमुखी की पीड़ा
- “मोहे रंग दो लाल” – होली का उत्सव
- “चलक चलक” – मस्ती का गीत
3. वेशभूषा और आभूषण
नीता लुल्ला और रेजा शेखेस्तेहपुर द्वारा डिजाइन की गई पोशाकें शानदार हैं। ऐश्वर्या की लाल साड़ी और माधुरी के कोठे के परिधान आज भी फैशन आइकॉन हैं।
4. सिनेमैटोग्राफी
बिनोद प्रधान की कैमरा वर्क ने हर दृश्य को कविता में बदल दिया। रंगों का इस्तेमाल बेजोड़ है – लाल, सुनहरा, और गहरे रंग फिल्म की आत्मा हैं।

आलोचकों और दर्शकों की राय
समीक्षकों ने कहा:
- “भंसाली की विजुअल मास्टरपीस” – फिल्मफेयर
- “भारतीय सिनेमा का गौरव” – टाइम्स ऑफ इंडिया
- “भव्यता की नई परिभाषा” – इंडिया टुडे
दर्शकों को पसंद आया:
- शानदार विजुअल्स और कोरियोग्राफी
- संगीत का जादू
- कलाकारों का दमदार अभिनय
- भावनात्मक कहानी
बॉक्स ऑफिस और वैश्विक सफलता
देवदास 2002 ने न केवल भारत में बल्कि दुनियाभर में धमाल मचाया:
- भारत में: ₹80 करोड़
- विदेशों में: ₹70 करोड़+
- वर्ल्डवाइड टोटल: ₹150 करोड़+
- 2002 की सबसे बड़ी हिट फिल्म
फिल्म को कान फिल्म फेस्टिवल में दिखाया गया – पहली भारतीय फिल्म जिसे यह सम्मान मिला।
पुरस्कार और सम्मान
देवदास ने 50+ पुरस्कार जीते, जिनमें शामिल हैं:
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार:
- सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय फिल्म
- सर्वश्रेष्ठ सेट डिजाइन
- सर्वश्रेष्ठ कोस्ट्यूम
फिल्मफेयर पुरस्कार (10 पुरस्कार):
- सर्वश्रेष्ठ फिल्म
- सर्वश्रेष्ठ निर्देशक – संजय लीला भंसाली
- सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री – ऐश्वर्या राय
- सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक – इस्माइल दरबार
BAFTA नॉमिनेशन:
- सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म

देवदास की विरासत
20+ साल बाद भी देवदास 2002 का जादू कायम है। यह फिल्म साबित करती है कि:
- प्रेम कहानियां कभी पुरानी नहीं होतीं
- भारतीय सिनेमा विश्व स्तर का है
- भव्यता और भावना साथ-साथ चल सकते हैं
आज की युवा पीढ़ी के लिए यह फिल्म क्लासिक सिनेमा का एक उदाहरण है।
क्यों आज भी देखनी चाहिए देवदास?
अगर आपने यह फिल्म नहीं देखी, तो आप एक सिनेमाई अनुभव से वंचित हैं। यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक दृश्य कविता है। हर दृश्य, हर गाना, हर संवाद दिल को छू जाता है।
“बड़ी देर कर दी मेहरबान आते-आते” – यह संवाद आज भी हर प्रेमी की जुबान पर है।
निष्कर्ष
देवदास 2002 संजय लीला भंसाली की कल्पना और भारतीय सिनेमा की क्षमता का प्रमाण है। यह एक ऐसी फिल्म है जो पीढ़ियों तक याद रहेगी। इसकी भव्यता, संगीत, और भावनाएं कालजयी हैं।
अगर आप सच्चे सिनेमा प्रेमी हैं, तो यह फिल्म आपकी “अवश्य देखें” सूची में होनी चाहिए।
रेटिंग: 4.5/5 ⭐⭐⭐⭐⭐
“देवदास मर गया… पर प्यार अमर है।”
